Wednesday, June 13, 2018

जैविक कीटनाशक और औषधीय दवा बनाने का तरीका..

महुआ इमली से दवा
सामग्री :
500 ग्राम महुआ व इमली की छाल का रस.
बनाने की विधि :
महुआ व इमली की छाल बराबर मात्रा में लेकर कूटकर रस निकालते हैं.
उपयोग का तरीका व समय :
500 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव सुबह – सुबह करते है. कपास की डोडी को खाने वाले गुलाबी रंग व धब्बेदार कीड़ों का नियंत्रण किया जा सकता है.
फूल – पुड़ी की दवा :
सामग्री :
किलो तम्बाखू, 500 ग्राम नीम का तेल, 25 ग्राम कपड़े धोने का साबुन |
बनाने की विधि :
1 किलो तम्बाकू को 5 लीटर पानी में गलाकर 3 दिन तक रखते है , चौथे दिन अच्छे से मसलकर निचोड़ कर घोल में 500 ग्राम नीम का तेल व 25 ग्राम साबुन भी मिलायें |
उपयोग का तरीका व समय :
15 लीटर पानी में 500 ग्राम तैयार घोल मिलाकर दो छिड़काव 15 दिनों के अंतर से सुबह – सुबह करें | सभी फसलों की इल्ली, सफेद व हरा मच्छर, मक्खी आदि के नियंत्रण हेतु |
कमलिया कीट की दवा :
सामग्री :
1 किलो तम्बाकू 400 ग्राम नीम का तेल, 25 ग्राम कपड़े धोने का साबुन, 100 ग्राम काले धतूरे के पत्ते का रस |
बनाने की विधि :
1 किलो तम्बाकू को 5 लीटर पानी में भिगोकर 3 दिन तक रखें तथा चौथे दिन अच्छे से मसलकर निचोड़कर 100 ग्राम काले धतूरे का रस, 250 ग्राम हरी मिर्च कूटकर मिलाकर छाने, घोले में 500 ग्राम नीम का तेल व 25 ग्राम साबुन मिलाने से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे |
उपयोग का तरीका व समय :
15 लीटर पानी में 500 ग्राम तैयार घोल मिलाकर दो छिड़काव 5 दिन के अंतर से सुबह – सुबह करें | सभी फसलों पर लगने वाले कमलिया कीट की कारगर दवा है |
हरे रंग की इल्ली की दवा :
सामग्री :
250 ग्राम तम्बाकू, 300 ग्राम हिराकासी, 50 ग्राम नींबू का सत |
बनाने की विधि :
250 ग्राम तम्बाकू, 300 ग्राम हीराकासी, 50 ग्राम नींबू का सात, 2 लीटर पानी में उबालकर छाने लें |
उपयोग का तरीका व समय :
250 ग्राम घोल को 15 लीटर पानी में मिलाकर सुबह – सुबह छिड़काव करें 2.5 बीघ के लिए 3 – 4 टंकी प्रयाप्त है |
किस – किस कीट पर काम आती है :
इससे सभी फसलों की इल्ली को रोकने में मदद मिलती है |
सावधानी :
एक सप्ताह पश्चात ही उसका पुन: छिड़काव किया जाये अन्यथा फसल जल सकती है |
माहू (मौला) नाशक दवा :
सामग्री :
10 किलो नीम की पत्ती
बनाने की विधि :
10 किलो नीम की पत्ती को रातभर 5 लीटर पानी में भिगोकर रखें व सुबह उबालकर, मसलकर छानकर घोल तैयार करें |
उपयोग का तरीका और समय :
इस पूरे घोल को 100 लीटर पानी में घोल कर सुबह – सुबह छिड़काव करें |
किस – किस कीट पर काम आती है :
इससे माहू व पत्ते खाने वाले सभी कीड़े मर जाते है |
इल्लीमच्छर मर दवा :
सामग्री :
5 लीटर गोमूत्र, 100 धतूरे के पत्ते |
बनाने की विधि :
5 लीटर गोमूत्र में 100 धतूरे के पत्ते को कूटकर मिलाकर छान लें |
उपयोग का तरीका व समय :
1 लीटर गोमूत्र घोल के 15 लीटर पानी में मिलाकर सुबह – सुबह छिड़काव करें |
किस – किस कीट पर काम आती है :
यह दवाई इल्ली और मच्छर को मारने की अचूक दवा है |
सावधानी :
15 दिन से ज्यादा पुराना गोमूत्र प्रयोग न करें | 15 दिन बाद ही इस दवा का फसल पर दोबारा प्रयोग करना चाहिए |
हरे व सफेद मच्छर व मक्खी मारने की दवा :
सामग्री:
500 ग्राम तम्बाकू पत्ती व 20 ग्राम साबुन |
बनाने की विधि :
500 ग्राम तम्बाकू को 5 लीटर पानी में आधा घंटे उबालकर, छानकर, ठंडा कर 20 ग्राम साबुन अच्छे से घोलकर दवाई तैयार करें |
उपयोग का तरीका व समय :
1 लीटर घोल में 15 लीटर पानी मिलाकर पौधों पर छिड़काव करें |
किस – किस कीट पर काम आती है :
यह दवाई हरे व सफेद मच्छर और मक्खी को मारने की अचूक दवा है |
सावधानी :
दवाई छिडकते समय दवाई मिट्टी पर नहीं गिरना चाहिए |
इल्ली मारने की दवा :
सामग्री :
1 किलो लहसुन, 200 ग्राम मिट्टी का तेल, 2 किलो हरी मिर्च |
बनाने की विधि :
1 किलो लहसुन छीलकर, पीसकर 200 ग्राम मिट्टी के तेल से भिगोकर रातभर रखना फिर सुबह 2 किलो मिर्ची पीसकर घोलना, अच्छे से मिलाना |
उपयोग का तरीका :
इस घोल को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिडकना |
किस – किस कीट पर काम आती है :
यह दवाई किसी भी फसल पर इल्ली व सूंडी लगने पर प्रयोग की जा सकता है |
चने व कपास की इल्ली नाशक दवा :
सामग्री :
10 किलो गोमूत्र, 1 किलो नीम या बेल या आंकड़े के पत्ते 100 ग्राम लहसुन |
बनाने की विधि :
10 लीटर गोमूत्र में 1 किलो नीम का या बेल या आंकड़े के पत्ते मिलाकर 15 दिन तक रखें | 15 दिन बाद इस घोल में 100 ग्राम लहसुन डालकर इतना उबालें की घोल 5 लीटर रह जाये |
उपयोग का तरीका :
15 लीटर की स्प्रे टंकी में 750 ग्राम मिश्रण डालकर फसल व छिड़काव करें |
किस – किस कीट पर काम आती है :
चने व कपास पर लगने वाली चिकनी व बाल वाली इल्ली के साथ – साथ माहू की अचूक दवा है |
कीड़े मारने की दवा :
सामग्री :
5 लीटर गोमूत्र, 1 लीटर निरगुण्डी का रस (30 40 निरगुण्डी के पत्तों का 10 लीटर पानी में 1 लीटर रह जाने तक उबालें) फिर 1 लीटर हिंग पानी (10 ग्राम हिंग को 1 लीटर पानी में घोलना)
बनाने की विधि :
5 लीटर गोमूत्र, 1 लीटर निरगुण्डीका रस,1 लीटर हींग पानी तीनों 8 लीटर पानी के साथ मिलाकर फसल पर छिड़कते हैं |
उपयोग का तरीका :
7 ;लीटर घोल 8 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए | 2.5 बीघा के लिए 21 लीटर घोल पर 24 लीटर पानी की जगह होती है |
किस – किस कीट पर काम आती है :
यह दवाई सभी फसलों पर लगने वाले कीड़ों के लिए अचूक दवा है |
सावधानी :
निरगुण्डी व हींग पानी बताई गई मात्रा के अनुसार ही मिलाए |
नीम खली के अर्क की दवा :
सामग्री :
5 किलो निबोली की खली या 3 किलो कुटी हुई निबोली |
बनाने की विधि :
5 किलो निंबोली की खली को 15 लीटर पानी में 3 दिन तक भिंगोकर रख दें | चौथे दिन दारू निकाले, 100 ग्राम धतूरे का रस, 250 ग्राम हरी मिर्च कूटकर निकलने की विधि से इसका तिन लीटर अर्क निकाले |
उपयोग का तरीका व समय :
5 लीटर अर्क को 15 लीटर पानी में मिलाकर सुबह – सुबह छिड़काव करें | यह दवा तने व पत्ते पर लगने वाली इल्ली, मच्छर व माहू के लिए असरकारक है |
कपास में माहू लगने पर 250 – 300 ग्राम धतूरे के पत्ते व टहनियों को 5 लीटर पानी में भिगों दे फिर इसे कुनकुना गर्म करें | ठंड करके फसल पर छिड़काव करते हैं जिससे तुरंत माहू मरने लगता है |
इस दवा का प्रयोग एक माह पुरानी फसल पर ही करना चाहिए |
निंबोल को पीसकर 100 ग्राम पावडर एक पौधे के चारों और 4 इंच गहराई में डालने से दीमक, गुबरैला, माहू आदि से छुटकारा मिलता है |
गोमूत्र का सुबह – सुबह फसल पर छिड़काव करने से कीड़े के प्रथम प्रकोप पर नियंत्रण किया जा सकता है |
बैगन व टमाटर पर चिट्टी रोग लग जाता हैं इस हेतु गाय के गोबर को पतला घोलकर पौधे की जड़ के पास डालते हैं |
आलू के पत्ते मुरझाने पर 10 किलो लकड़ी की राख में 50 ग्राम फिनायल की गोली का पाउडर व 50 ग्राम तम्बाकू के पत्ते को मिलाकर मिश्रण बना कर सुबह – सुबह फसल पर छिडकने से लाभ होता है |
बैगन, टमाटर, मिर्ची व अन्य सब्जियों पर लगने वाले कीड़ों को मारने के लिए लकड़ी की ठंडी राख सुबह – सुबह भुरके लाभ होगा |
टमाटर की पत्तियों व टहनियों को उबालकर ठंडी कर फसल पर पत्ते खाने वाली हरी व कलि मक्खियों को मारने के लिये छिड़काव करे |
करेले पर अर्धगोलाकार लाल भूरा रंग का कीड़ा जिस पर काले रंग के चकत्ते होते हैं ये सिगार के आकर के अण्डे देते हैं इनसे पीले रंग की कांटेदार सुंडिया निकलती है | ये कीड़े व सुंडियां दोनों पत्तों को खाते है | इसे रोकने के लिए 60 ग्राम साधारण साबुन को आधा लीटर पानी के घोल में 1 लीटर नीम का तेल मिलाकर घोल तैयार करें | फिर इस घोल में 20 लीटर पानी अच्छी तरह से मिलाकर 400 ग्राम पीसी हुई लहसुन को घोले फिर छानकर फसल के पत्तों पर छिड़काव करें |
मिर्ची के फूल झड़ने से रोकने के लिए ईंट भट्टे से राख लाकर गोबर के साथ अच्छी तरह से मिलाकर पानी में पतला घोल बनाकर पौधों पर छिड़कने से लाभ होगा |
मक्का पर लगने वाली टिड्डी से बचने के लिए 3 किलो प्याज पीसकर उसका रस निकालकर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव देते हैं जिसकी गंध के कारण टिड्डी खेत के पास तक नही आती है |
वह इल्ली जो पौधों के पत्ते खाने के साथ – साथ तना खाकर पौधों को सूखा देती हैं इससे बचने के लिए 10 किलो नीम खली को पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें |
चने पर लगने वाली इल्ली से बचने के लिए 5 किलो अडूसा की टहनियों का रस निकालकर 10 लीटर पानी में मिलाकर 2 – 3 बार कपड़े से छानकर 5 लीटर पानी मिलाकर सुबह – सुबह फसल पर छिड़काव करें |
हरी इल्ली का गिदान से निदान :
10 लीटर गोमूत्र में 5 किलो गिदान की पत्तियाँ एवं 250 ग्राम लहसुन को बारीक पीसकर डाल दें इसे 48 घंटे तक गोमूत्र में पड़ा रहने दें तत्पश्चात इसको छानकर अर्क निकल लें | 100 से 150 मि.ली. लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से चने की इल्ली तथा चितकबरी इल्ली पर प्रभावी नियंत्रण होता है | यह नुस्खा ग्राम मलगांव के कृषकों के द्वारा परीक्षित है उन्होंने इसका उपयोग कर जैविक कपास का उत्पादन किया है |
2 लीटर छाछ, 200 ग्राम तम्बाकू का पाउडर व 2 पत्ते ग्वारपाठा (धिंकुवर) को 15 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के लिए रख देते हैं फिर छानकर 15 लीटर पानी में 100 ग्राम सत का 8 – 10 दिन के अंतराल से छिड़काव करने से मूंग का उत्पादन कीट नियंत्रण होकर अच्छा होता है |
धान की फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिए धान बोने के दस दिन बाद पानी भरे | खेत में इमली के बीज बिखेर दें ये बीज धीरे – धीरे सड़ जाएगा व पानी का रंग पीला पड़ जाएगा | जिससे उत्पादन में 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है |
1 किलो तम्बाकू की पत्ती को 10 लीटर पानी में आधे घंटे तक उबालकर ठंडाकर छानकर 20 ग्राम साबुन को अलग से 5 लीटर में अच्छे से घोलकर तम्बाकू के घोल में मिला लें | फिर 30 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें | इससे पत्ते काटने वाली इल्ली व हरे सफेद मच्छर, मखियों, तना भेदक इल्ली व डोडी खाने वाली इल्ली व कीड़े मर जाते हैं |
एक किलो तम्बाकू को 200 ग्राम चूने से बुझे 10 लीटर गर्म पानी में एक दिन के लिए रखें फिर मसलकर छानकर 100 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें जिससे सफेद मक्खी, मच्छर, इल्ली व नरम शरीर वाले कीड़े मर जाते हैं |
नसेड़ी (बेशरम बेल) के पत्तों को कूटकर रस निकालें, 250 ग्राम रस व 20 ग्राम साबुन को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें जिससे मच्छर, मक्खी व इल्ली मर जाती है |
सनाय व नीम के बराबर मात्रा लेकर कूटकर रस निकाले, 250 ग्राम रस व 20 ग्राम साबुन को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें जिससे मच्छर, मक्खी व इल्ली मर जाती हैं |
10 लीटर छाछ को एक मटके में एक माह तक रखें | बाद में इसमें गेंहू का आटा आधा किलो मिलाए | इस मिश्रण को पतला करके चने के खेत में चने की इल्ली का नियंत्रण करने के लिए छिड़काव करें |
चने का उकठा रोग (फ्यूजेरियम विल्ट) के नियंत्रण के लिए चने को छाछ से बीजोपचार करें | जिन खेतों में यह रोग होता हैं , उसमें चने को चार घंटे छाछ में भिगोने के बाद छांव में हलका सुखाकर बोए |
बोगनविलिया की पत्तियों को कच्चे दूध से भिगोंकर रत भर रखें | दुसरे दिन सुबह इन पत्तियों को निचोड़कर उसका अर्क निकाल लें | इसका 10 प्रतिशत का घोल बनाकर तम्बाकू, टमाटर और मिर्च में होने वाले कुकड़ा रोग (चुर्रा – मुर्रा) को नियंत्रण करने के लिए छिड़काव करें |
गोमूत्र का कीटनाशक के रूप में उपयोग करने के लिए गोमूत्र का 5 प्रतिशत घोल का उपयोग करें , 10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र तांबे के बर्तन में ले | उसमें नीम के एक किलो पत्ते डाले और 15 दिन तक गलने दें फिर उसे तांबे की कढ़ाई में उबालें, पचास प्रतिशत रह जाने पर नीचे उतार लें , छान लें | इस औषधी में सौ गुना पानी मिलाकर छिड़काव कर दें |
5 लीटर देशी गाय के मट्ठे में 5 किलो नीम के पत्ते डालकर 10 दिन तक सडाएं, बाद में नीम की पत्तियों को निचोड़ लें | इस नीम युक्त मिश्रण को छानकर 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के मान के समान रूप से फसल पर छिड़काव करें | इससे इल्ली व माहू का प्रभावी नियंत्रण होता है |
5 लीटर मट्ठे में 1 किलो नीम के पत्ते व धतूरे के पत्ते डालकर 10 दिन सड़ने दें | इसके बाद मिश्रण को छानकर इल्लियों का नियंत्रण करें |
5 किलो नीम के पत्ते 3 लीटर पानी में डालकर उबाल लें | जब आधा रह जाए तब उसे छानकर 150 लीटर पानी में घोल तैयार करें | इस मिश्रण में 2 लीटर गोमूत्र मिलाएं | अब यह मिश्रण एक एकड़ के मान से फसल पर छिडकें |
1/2 किलो ग्राम हरी मिर्च व लहसुन पीसकर 150 लीटर पानी में डालकर छान लें तथा 1 एकड़ के लिए इस घोल का छिडकाव करें |
मारुदान, तुलसी (श्याम) तथा गेंदे के पौधे फसल के बीच में लगाने से इल्ली का नियंत्रण होता है |
मक्का के भुट्टे से दान निकालने के बाद जो गिन्ड़ियाँ बचती हैं , उन्हें एक मिट्टी के घड़े में इक्कठा कर लें | इस घड़े को खेत में इस प्रकार गाड़ें की घड़े का मुंह जमीन से कुछ बाहर निकला हो | घड़े के ऊपर कपड़ा बांध दें तथा उसमें पानी भर दें | कुछ दिनों में ही आप देखेंगे कि घड़े में दीमक भर गई है | इसके उपरांत घड़े को बाहर निकालकर गरम कर लें, ताकि दीमक समाप्त हो जाए | इस प्रकार के घड़े को खेत में 100 – 100 मीटर की दूरी पर गड़ाकर तथा करीब 5 बार गिन्ड़ियाँ बदलकर यह क्रिया दोहराएँ | खेत से दीमक समाप्त हो जाएगा |
सुपारी के आकार की हींग एक कपड़े में लपेटकर तथा पत्थर में बांधकर खेत की ओर बहने वाले पानी की नाली में रख दें | उससे दीमक तथा उगरा रोग नष्ट हो जाएगा |
5 लीटर देशी गाय के मट्टे में 5 किलोग्राम नीम के पत्ते डालकर 10 दिन तक सडाएं, बाद में नीम की पत्तियों को निचोड़ लें | इस नीम युक्त मिश्रण को छानकर 150 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के मान से समान रूप से फसल पर छिड़काव करें | इससे इल्ली व माहू का प्रभावी नियंत्रण होता है |
5 लीटर मट्ठे में 1 किलोग्राम नीम के पत्ते व धतूरे के पत्ते डालकर 10 दिन सड़ने दें | इसके बाद मिश्रण को छानकर इल्लियों का नियंत्रण करें|
5 किलोग्राम नीम के पत्ते 3 लीटर पानी में डालकर उबाल लें | जब आधा रह जाए तब उसे छानकर 150 लीटर पानी में घोल तैयार करें | इस मिश्रण में 2 लीटर गोमूत्र मिलाएं | अब यह मिश्रण 1 एकड़ के मान से फसल पर छिड़के |
½ किलोग्राम हरी मिर्च व लहसुन पीसकर 150 लीटर पानी में डालकर छान लें तथा 1 एकड़ के लिए इस घोल का छिड़काव करें |
टिन की बनी चकरी खेतों में लगाने से भी इल्लियाँ गिर जाती है |
1 लीटर मट्ठे में चने के आकार के हींग के टुकड़े मिलाकरउससे चने का बीजोपचार करें | तत्पश्चात बोनी करें | सोयाबीन, उड़द, मूंग एवं मसूर के बीजों को अधिक गिला न करें |
400 ग्राम नीम के तेल में 100 ग्राम कपड़े धोने वाला पाउडर डालकर खूब फेंटे, फिर इस मिश्रण में 150 लीटर पानी डालकर घोल बनाएं | यह एक एकड़ के लिए पर्याप्त हैं |
नीम बीज के नौ ग्राम पाउडर को नौ लीटर पानी में मिलाकर 1 प्रतिशत सांद्रता का अवलम्बन बनाया जाता है | इसका छिड़काव करने से यह टिड्डी, आर्मी वर्म तथा पत्ती खाने वाले कीटों को रोकता है अर्थात कीटों को पौधे से दूर रखता हैं |
नीम बीज की निम्बोली पाउडर 2 किलोग्राम यदि 100 किलोग्राम गेहूं बीज में मिलाया जाए तो यह चावल की सूंडी तथा अन्य कीटों का नियंत्रण होता है |
2 किलोग्राम कुचले हुए नीम बीज को यदि मूंग, चना, चावल के 100 किलोग्राम बीज में मिलाया जाए तो यह क्रमश: 8,9,एवं 12 महीने के लिए पल्स बीटल से सुरक्षा करता है |
सीताफल के बीज के तेल का 10 प्रतिशत इमल्शन छ्द्कें या सीताफल के बीज को एक – दो दिन पानी में भिंगोकर रखें और बीज को पीसकर अर्क को छानकर छिड़के | सीताफल के बीज को भूरक – चूर्ण (डस्ट) का उपयोग महो, हरे मच्छर, इल्लियाँ, भृंग इत्यादी कीटों को नियंत्रित करता हैं, यह स्पर्श व उदर विष है |
सीताफल व अर्नी के बराबर पत्ते लेकर 1 लीटर पानी में उबलना व मसलकर छानकर रस एकत्र करें , 200 ग्राम रस में 10 लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें |
5 किलो धतुरा की पत्ती, तना व जड़ को कूटकर पतले थैले में बांध ले | खेत में सिंचाई करते समय जहाँ पाईप का पानी गिरता है वहां थैले में बंधी दवा को रख दें | इससे दीमक पर नियंत्रण होगा |
करंज वनस्पति व तुलसी के रसायन जीवाणु जनित के प्रति नैसर्गिक प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न होती है | यह रसायन फूल गोभी, मिर्च, टमाटर, के फल – सडन, कपास मिर्च के कोणीय धब्बे व नीबू संतरा, मोसमी के केंकर की रोकथाम करते है |
वानस्पतिक कीट नाशक :-
वनस्पति
कौन सा भाग उपयोगी है
कैसे काम करता है
किस कीट पर प्रभावशाली
बेखंड (बच्य)
जड़
संपर्क से गंध विरोध
फफूंद
लहसुन
गुदा
फफूंद नाशक
चीटियां
सुगंधी वच्छ
जड़
गंध विरोधी
फल मक्खी धान का भूसा तथा सड़न रोग
सिताफल
पत्तें / बीज
संपर्क
इल्ली
हल्दी
जड़ और तना
कीड़ों की भूख मिटाता है
लाल मकड़ी, थ्रिप्स , कई कीट
गवती चाय
पत्तें
संपर्क विष
मच्छर, कई कीट
बैचन्दी
ट्यूबर
संपर्क विष
कई कीट
इथी
पूरा पौधा
संपर्क विष
कई कीट
तम्बाकू
पूरा पौधा
संपर्क विष
गोभी का पतंग
गिलोय
बेल
संपर्क विष
गोभी का पतंग
टून
पूरा पौधा
संपर्क विष
मोला
जंगली अद्रक
पूरा पौधा
संपर्क विष
इल्लियां, मोला
क्वासिया उभारा
पूरा पौधा
संपर्क विष
माहो, आरा मक्खी
एक किलो राख को 10 लीटर पानी में मिलाकर रात भर रखें | उसके उपरांत उसे छानकर उसमें एक लीटर छाछ या मठा मिलायें | इस मिश्रण को तीन गुना पानी में मिलाकर छिड़काव करें | छिड़काव का विपरीत असर पत्तियों पर तो नहीं हैं | इसे देखने के लिए एक – दो पौधों प्र छिड़काव करके सुनिश्चित कर लें | इसके उपयोग से भभूतियाँ व लाल पत्तियों की समस्या का नियंत्रण संभावित है | महुआ व इमली की छाल बराबर मात्रा में लेकर कूटकर रस निकालते हैं, 500 ग्राम रस को 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव सुबह – सुबह करें | कपास की डोडी को खाने वाली गुलाबी रंग व धब्बेदार कीड़ों को मरता हैं | 50 ग्राम राख में 25 ग्राम चूना मिलाकर 4 – 5 लीटर पानी में मिलायें व थोड़ा समय रखें | तदोपरांत उसे छानकर डालने से ककड़ी के कीड़ों की रोकथाम में उपयोगी पाया गया है | एक किलोग्राम राख में 10 – 15 .मि.ली. केरोसिन (मट्टी के तेल) को मिलाकर प्रात:काल में पौधों पर भुरकने से रस चूसने वाले कीड़ों की रोकथाम संभव है | आवश्यकता अनुरूप पांच – सात दिन के उपरांत पुन: भुरकाव करें |
जैविक खेती से बीजोपचार :
बड़ की मिट्टी में अमृतपानी की इतनी मात्रा मिलाये कि वह घोल बीज पर छिडकने के लायक हो जाये | बीज पर उक्त घोल को छिड़ककर अच्छी तरह मिलाने के लिए हल्के हाथों से मिलावें या सुपे में बीज लेकर उसमें उक्त घोल का छिड़काव करे एवं सूपे को हिलाकर बीज को उपचारित कर या पुराना मटका लेकर उसमें थोड़ा बीज भरकर उसमें घोल का छिड़काव कर मटके को अच्छी तरह हिलावे ताकि घोल का बीज पर अच्छी तरह लेप हो जावे | अच्छी तरह लेप हो जावे | इस लेप दिए हुए बीज को छाया में सुखा लें फिर बुआई करें |
अरहर, सोयाबीन, मूंगफली के बीज का छिलका बहुत नरम होता हैं | इसलिए येसे बीजों पर बहुत ही हल्का लेप चढ़ाकर शीघ्र बोआई करना चाहिए |
जिन फसलों की रोपाई होती हैं जैसे मिर्ची, टमाटर, बैंगन इत्यादी की रोप की अमृत जड़ों को रोपने के पूर्व 10 मिनट तक अमृत पानी में डुबोकर रखने से बिमारियों का आक्रमण बहुत कम हो जाता है |
हल्दी, अदरक, आलू, गन्ना, केला, अरबी इत्यादी फसलों की गांठों या कंदों को अमृत पानी में 10 मिनट तक डुबोकर लगाना चाहिए जिससे स्वस्थ अंकुरण होगा और फसल बिमारियों से बहुत कम प्रभावित होती है | येसा अनुभव किया गया है |
लहसुन का कीड़ों की रोकथाम के लिए उपयोग :
लहसुन गांवों में आसानी से किसानों के पास उपलब्ध हैं | लहसुन के अर्क का उपयोग कीटनाशक के रूप में एलिसीन नामक तत्व होता है एवं कुछ उड़नशील तेल जैसे हायलीक ट्रायसल्फ़ाइड एवं सल्फो आक्साइड होता हैं जो कि फसलों में लगने वाले कीड़ों को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं |
लहसुन का अर्क निकालने की विधि :
85 ग्राम लहसुन को 50 मि.ली. मिट्टी के तेल में मिलाकर 24 घंटे पड़ा रहने दे, फिर इसमें 10 मिली. साबुन का घोल मिलाकर अच्छी तरह हिलावें ताकि पूरा मिश्रण एकाकार हो जावे | तत्पश्चात बारीक छन्नी या कपड़े से छानकर अर्क को एक पात्र में निकालकर उपयोग हेतु भंडारित करके रख दें | उपयोग के समय एक भाग अर्क तथा 19 भाग पानी मिलाकर घोल का छिड़काव प्रात:काल करने से कपास एवं सब्जियों में लगने वाले कीड़ों जैसे माहू एवं इल्लियों को नियंत्रित करता हैं |
लहसुन के साथ हरी मिर्च मिलाकर अर्क बनाने की विधि :
हरी मिर्च एवं लहसुन की समान मात्रा लें | दोनों को पीसकर अर्क तैयार कर लें एवं इस अर्क का एक भाग एवं 200 भाग पानी मिलाकर हैलियोथिस एवं अन्य इल्लियों तथा माहू के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें |
अनाज भंडारण में लगने वाले कीटों की रोकथाम के घरेलू उपाय :
अनाज को कड़ी धूप में सुखाकर ही भंडारण करना चाहिए | अनाज में 12 से अधिक नमी होने पर फफूंद लगने से अनाज खराब हो जाता है | इस अनाज को इतना सुखाना चाहिए की दाने को दांतों से काटने पर कट्ट सी आवाज आए |
दलों को भंडारण से पूर्व दाल पर आधा लीटर मीठा तेल (अरंडी, मूंगफली इत्यादी) 100 किलो दाल में अच्छी तरह मिलाकर दलों पर तेल की परत चढ़ा दें | इससे दालों को बचाया जा सकता है |
गेंहू एवं अन्य अनाजों को अच्छी तरह सुखाकर सील बंद कोठियां जिससे हवा का आवागमन न हो, में भंडारण करना चाहिए |
अनाजों के भंडारण के लिए अनाज के नीचे नीम की पत्तियां बिछा देने से भी घुन नहीं लगता |
जंगली तुलसी (पांचाली) तथा गुलसितारा की पत्तियाँ अनाज में मिलाकर रखने से घुन नहीं लगता |
लकड़ी या कंडे की राख (अग्निहोत्र भस्म हो तो बहुत अच्छा) को चने एवं अन्य दालों में मिलाकर रखने से दालों का भृंग (घुन)  नहीं लगता एवं दालें सुरक्षित रहती हैं |
लहसुन के दो गांठ को प्रति 5 किलो चावल के हिसाब से चावल में रखने पर घुन, तिलचट्टे एवं चीटियों का आक्रमण नहीं होता |
अडूसा की पत्तियाँ भी अनाज भंडारण में उपयोगी हैं |
निंबोली चूर्ण अनाज के साथ मिलाकर रखने से कीड़े नहीं लगते |
चावल में बोरिक एसिड पावडर मिलाकर रखने से घुन नहीं लगता.

Monday, October 3, 2016

गाल ब्लैडर स्टोन की चमत्कारी दवा :
तो क्या है ये चमत्कारी दवा। ये कुछ और नहीं ये है गुडहल के फूलों का पाउडर अर्थात इंग्लिश में कहें तो HIBISCUS POWDER। ये पाउडर बहुत आसानी से पंसरी से मिल जाता है। अगर आप गूगल पर HIBISCUS POWDER नाम से सर्च करेंगे तो आपको अनेक जगह ये पाउडर ONLINE मिल जायेगा। और जब आप ONLINE इसको मंगवाए तो इसको देखिएगा ORGANIC HIBISCUS POWDER क्योंकि आज कल बहुत सारी कंपनिया आर्गेनिक भी ला रहीं हैं तो वो बेस्ट रहेगा। कुल मिला कर बात ये है के इसकी उपलबध्ता बिलकुल आसान है। अब जानिये इस पाउडर को इस्तेमाल कैसे करना है।
गुडहल का पाउडर एक चम्मच रात को सोते समय खाना खाने के कम से कम एक डेढ़ घंटा बाद गर्म पानी के साथ फांक लीजिये। ये थोडा कड़वा होता है। इसलिए मन भी कठोर कर के रखें। मगर ये इतना भी कड़वा नहीं होता के आप इसको खा ना सकें। इसको खाना बिलकुल आसान है। इसके बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है. डॉ. मिश्रा जी के अनुसार, क्यूंकि उनके स्टोन का साइज़ बहुत बड़ा था उनको पहले दो दिन रात को ये पाउडर लेने के बाद सीने में अचानक बहुत तेज़ दर्द हुआ, उनको ऐसा लगा मानो जैसे हार्ट अटैक आ जायेगा। मगर वो दर्द था उनके स्टोन के टूटने का . जो दो दिन बाद नहीं हुआ। और 5 दिन के बाद कहीं गायब हो गया था और पीछे रह गयी थी उसकी यादें रेत बनकर, जिनका सफाई अभियान अभी चल रहा है। इसके साथ में उनको प्रोस्टेट enlargement की समस्या भी थी, वो भी सही हो गयी। इसके बाद यही प्रयोग उन्होंने एक दूधवाले और एक और आदमी पर भी किया जिनका स्टोन 8 mm और 10 mm था, उनको यही प्रयोग बिना किसी दर्द के बिलकुल सही हुआ। अर्थात अगर स्टोन का साइज़ बड़ा है तो वो दर्द कर सकता है।
यही प्रयोग एक बहुत ही प्रतिष्ठित डॉ कम से कम 5 से 10 हज़ार लेकर लोगों को करवाते हैं। और आपके लिए हम इसको फ्री में उपलब्ध करवाते है जन हित के लिए। आप भी इसको ज़रूर शेयर करें। जुड़े रहें आयुर्वेद के साथ।

Wednesday, April 4, 2012

भारत सोने की बत्‍तख


भारत के बारे में कहते हैं कि यह सोने की चिड़िया था। बहुत से लोगों को इसका मलाल है कि उस चिड़िया को अंग्रेज नोच ले गए। लेकिन हकीकत कुछ और है। भारत आज भी सोने की बत्तख है और यह एक बत्तख की तरह ही बदसूरत है। सोना भारत की किस्मत नहीं, ट्रैजिडी है।इन आंकड़ों पर गौर कीजिए। भारत में 20 हजार टन सोना घरों में या लॉकर्स में कैद है। इसकी कीमत लगभग 27 लाख करोड़ रुपए है, जो कि भारत की जीडीपी के 60 पर्सेंट के बराबर है। अकेले पिछले साल 933 टन सोना भारत आया। इतने सारे सोने का हम क्या इस्तेमाल करते हैं? सजावट या होर्डिंग के अलावा कुछ नहीं। कुल गोल्ड स्टॉक का महज 10.5 ही आरबीआई के खजाने का हिस्सा है। अगर हम सोना नहीं खरीद रहे होते और इस पैसे को दूसरे असेट्स या इस्तेमाल पर खर्च कर रहे होते, तो क्या होता? देश की आर्थिक गतिविधियों पर 27 लाख करोड़ का सालाना इन्वेस्टमेंट बढ़ जाता। ऐनुअल कैपिटल फॉर्मेशन(कारखाने, मशीनरी और इंफ्रास्ट्रक्चर) पर जितना पैसा लगता है, उससे दोगुना हम सोने पर खर्च कर देते हैं। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर ऐसा नहीं होता तो जीडीपी की रफ्तार कई पॉइंट ऊपर होती। मुमकिन है चीन से आगे या उसके बराबर। गोल्ड के अलावा जिस भी मद में हम खर्च, इन्वेस्टमेंट या सेविंग करते हैं, वह किसी-न-किसी प्रोडक्टिव काम में जाता है। और हैरानी की बात यह है कि किसी भी घरेलू बचत के मुकाबले सोने पर हमारा खर्च छह गुने से भी ज्यादा है। भारत दुनिया में गोल्ड का इंपोर्ट करने वाला सबसे बड़ा देश है। हमारी इंपोर्ट लिस्ट में तेल और मशीनरी के बाद इसका तीसरा नंबर है। पिछले साल हमने 33.9 अरब डॉलर का गोल्ड इंपोर्ट किया। इस साल यह 58 अरब डॉलर हो सकता है। यह हमारे कुल इंपोर्ट बिल का 12 पर्सेंट है। अब यह देखिए कि 2010-11 में हमने 479 अरब डॉलर का इंपोर्ट किया और हम ट्रेड डेफिसिट में हैं। अपने एक्सपोर्ट के मुकाबले हमारा इंपोर्ट 175 अरब डॉलर ज्यादा है। यह एक बहुत बड़ा आंकड़ा है, जिसने सरकार को होश उड़ा रखे हैं। आज भारत का एक बड़ा संकट यह डेफिसिट है। सोचिए, अगर हम दुनिया भर का सोना खरीद कर अपने घर नहीं भर रहे होते, तो यह डेफिसिट नहीं होता, भारत की फाइनैंशल हालत बेहद मजबूत होती।इस बजट में जब गोल्ड पर ड्यूटी बढ़ाई गई, तो यही सब बातें सरकार के दिमाग में थीं। इस सख्ती का कोई असर गोल्ड से हमारे प्यार पर होगा, इसकी उम्मीद करना बेकार है। सोना महंगा हो जाएगा और वह जितना महंगा होता जाता है, उतना ही उसकी कद्र हमारे दिल में बढ़ती जाती है।लेकिन चीजें एकदम साफ हैं। दुनिया के सबसे अमीर देश सोना नहीं खरीदते। सोने का सबसे बड़ा खरीदार दुनिया का एक सबसे गरीब देश भारत है। सोना भारत की गरीबी की एक बड़ी वजह है, क्योंकि यह उस पूंजी को हमेशा के लिए एक ऐसे असेट में दफन कर देता है, जिससे तरक्की के लाखों काम हो सकते थे। कोई भी गरीब देश ऐसी लग्ज़री अफोर्ड नहीं कर सकता। तब तो कतई नहीं, जब उसके चलते उसका विदेशी व्यापार खतरे में पड़ रहा हो और फॉरेन एक्सचेंज का खजाना खाली हुआ जा रहा हो।अगर हम सोने से इतना प्यार नहीं करते, तो भारत की दशा कुछ और ही होती। कुछ इकनॉमिस्ट इसके लिए भारत के पिछड़ेपन को कसूरवार मानते हैं। उनका कहना है कि जब लोगों के पास बचत से दूसरे तरीके नहीं होते, तो वे सोने जैसी चीजें ही खरीदते हैं। सोने को हमेशा से बुरे वक्त में सहारे की तरह देखा गया है। लेकिन मेरा सवाल यह है कि दुनिया भर के दूसरे पिछड़े, गरीब और असुरक्षित लोगों के मुकाबले हम भारतीयों को ही क्यों इतना डर सताता है कि सोना खरीदते जाते हैं? क्या हम सबसे ज्यादा डरपोक हैं या हमें अपनी पूंजी को दांव पर लगाकर आगे बढ़ना जमता ही नहीं था? क्या भारत का भाग्यवादी मिजाज इसके पीछे था, जो आज भी बहुत नहीं बदला है?सोने की चाहत हर सोसायटी में रही है। सोने के लिए दुनिया भर में लड़ाइयां हुई हैं, लेकिन सोने से ऐसा जानलेवा लगाव और कहीं नहीं दिखता। क्या कोई तरीका है, जो हमारी तबीयत को सुधार सकता है?जैसे-जैसे इकॉनमी के ज्यादा डायनैमिक, ज्यादा खर्चीले, इन्वेस्टमेंट के ज्यादा मौकों और फायदे के नए हिसाब वाले बदलाव पर यकीन बढ़ेगा, सोने का सुरूर कमजोर पड़ेगा। ऐसा होना चाहिए, लेकिन परंपरा से प्यार करने वाले इस देश में बचत की पुरानी आदतें भी पुरानी पीढ़ी से नई में शिफ्ट हो रही हैं। सोना जिस तरह हमारी कल्चर पर हावी है, उसे देखते हुए ड्रमैटिक बदलाव मुश्किल है, जब तक कि ओल्डर जेनरेशन ही अपने खयालात बदलने न लगे।इन हालात में मैं उन गोल्ड लोन कंपनियों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, जिन्होंने केरल से आकर हमें सिखाया कि सोने को लिक्विड असेट में कैसे बदला जा सकता है। यह बिज़नस तेजी से फैल रहा है, लेकिन अभी इसका कारोबार कुल गोल्ड स्टॉक के 1.5 पर्सेंट से भी कम है। गड़बड़ी के डर से आरबीआई ने इधर भी सख्ती दिखाई है, लेकिन इस बिज़नस ने माइंडसेट पर असर डालना शुरू तो कर ही दिया है।बदलाव धीमा है। उस डिमांड के मुकाबले तो कुछ भी नहीं, जो उछाल मारती जा रही है। और जब जवाब नहीं सूझते तो यह कल्पना ही बची रह जाती है कि एक वायरस हम पर अटैक करेगा और हम पाएंगे कि हमें सोने से नफरत होने लगी है।

Thursday, March 1, 2012

कौरवो - पांडव परिवार

पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -
1. युधिष्ठिर
2. भीम
3. अर्जुन
4. नकुल
5. सहदेव
पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की माता कुन्ती थीं तथा नकुल और सहदेव की माता माद्री।
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -
1. दुर्योधन
2. दुःशासन
3. दुःसह
4. दुःशल
5. जलसंघ
6. सम
7. सह
8. विंद
9. अनुविंद
10. दुर्धर्ष
11. सुबाहु
12. दुषप्रधर्षण
13. दुर्मर्षण
14. दुर्मुख
15. दुष्कर्ण
16. विकर्ण
17. शल
18. सत्वान
19. सुलोचन
20. चित्र
21. उपचित्र
22. चित्राक्ष
23. चारुचित्र
24. शरासन
25. दुर्मद
26. दुर्विगाह
27. विवित्सु
28. विकटानन्द
29. ऊर्णनाभ
30. सुनाभ
31. नन्द
32. उपनन्द
33. चित्रबाण
34. चित्रवर्मा
35. सुवर्मा
36. दुर्विमोचन
37. अयोबाहु
38. महाबाहु
39. चित्रांग
40. चित्रकुण्डल
41. भीमवेग
42. भीमबल
43. बालाकि
44. बलवर्धन
45. उग्रायुध
46. सुषेण
47. कुण्डधर
48. महोदर
49. चित्रायुध
50. निषंगी
51. पाशी
52. वृन्दारक
53. दृढ़वर्मा
54. दृढ़क्षत्र
55. सोमकीर्ति
56. अनूदर
57. दढ़संघ
58. जरासंघ
59. सत्यसंघ
60. सद्सुवाक
61. उग्रश्रवा
62. उग्रसेन
63. सेनानी
64. दुष्पराजय
65. अपराजित
66. कुण्डशायी
67. विशालाक्ष
68. दुराधर
69. दृढ़हस्त
70. सुहस्त
71. वातवेग
72. सुवर्च
73. आदित्यकेतु
74. बह्वाशी
75. नागदत्त
76. उग्रशायी
77. कवचि
78. क्रथन
79. कुण्डी
80. भीमविक्र
81. धनुर्धर
82. वीरबाहु
83. अलोलुप
84. अभय
85. दृढ़कर्मा
86. दृढ़रथाश्रय
87. अनाधृष्य
88. कुण्डभेदी
89. विरवि
90. चित्रकुण्डल
91. प्रधम
92. अमाप्रमाथि
93. दीर्घरोमा
94. सुवीर्यवान
95. दीर्घबाहु
96. सुजात
97. कनकध्वज
98. कुण्डाशी
99. विरज
100. युयुत्सु
(नोटः अलग अलग ग्रंथों में कुछ नामों में परिवर्तन भी मिलते हैं।)
उपरोक्त सौ कौरवों की एक बहन भी थी जिसका नाम था दुश्शला।

देश का गौरव - झाँसी की रानी

झाँसी की रानी
रचनाकार: सुभद्रा कुमारी चौहानसिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (1828 - 17 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी थी । वह् सन् १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता सन्ग्राम की नायिका थी । इनका जन्म काशी (वाराणसी) तथा मृत्यु ग्वालियर में हुई । इनके बचपन का नाम मनिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था । इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और वो एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण थे। इनकी माता भागीरथीबाई एक सुसन्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की म्रत्यु हो गयी । इनका पालन पिता ने ही किया । मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। इनका विवाह सन १८४२ में झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झांसी की रानी बनी । विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया । सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी । सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी । दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया ।
ब्रितानी राजनीति
डलहौजी की राज्य हडपने की नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो कि उस समय बालक थे, को झांसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया, तथा झांसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया । तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया । यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया । ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झांसी के किले को छोड कर झांसी के रानीमहल मे जाना पडा । पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झांसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था ।झांसी का युद्धझांसी 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिन्सा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया । इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस विद्रोह में सहयोग दिया । 1857 के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झांसी पर आक्रमण कर दिया । रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया । 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झांसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया । दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर् लिया । परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अन्ग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी । रानी झांसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।