Friday, August 29, 2008

धारणा से जरा बच के


धारणा से जरा बच के
धारणा से पाएँ सब कुछ
अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
।।देशबंधश्चितस्य धारणा।।-पतंजलिचित्त का देश विशेष में बँध जाना धारणा है।
ND
NDयम, नियम, आसन, प्राणायम और प्रत्याहार को क्रमश: धारणा के समुद्र में छलाँग लगाने की तैयारी मात्र माना गया है। धारणा से ही कठिन परीक्षा और सावधानी की शुरुआत होती है। जिसे धारणा सिद्ध हो जाती है, कहते हैं कि ऐसा योगी अपनी सोच या संकल्प मात्र से सब कुछ बदल सकता है। ऐसे ही योगी के आशीर्वाद या शाप फलित होते हैं।निगाहें स्थिर : इस अवस्था में मन पूरी तरह स्थिर तथा शांत रहता है। जैसे क‍ि बाण के कमान से छूटने के पूर्व लक्ष्य पर कुछ देर के लिए निगाहें स्थिर हो जाती हैं, जैसे क‍ि तूफान के आने से पूर्व कुछ देर हवाएँ स्थिर हो जाती हैं, जैसे कि दो भीमकाय बादलों के टकराने के पूर्व दोनों चुपचाप नजदीक आते रहते हैं। ठीक उसी तरह योगी के मन की अवस्था हो चलती है, जबकि उसके एक तरफ संसार होता है तो दूसरी तरफ रहस्य का सागर। यह मन से मुक्ति की शुरुआत भी है। धारणा सिद्ध व्यक्ति की पहचान यह है कि उसकी निगाहें स्थिर रहती है।दृड़ निश्चियी : धारणा के संबंध में भगवान महावीर ने बहुत कुछ कहा है। श्वास-प्रश्वास के मंद व शांत होने पर, इंद्रियों के विषयों से हटने पर, मन अपने आप स्थिर होकर शरीर के अंतर्गत किसी स्थान विशेष में स्थिर हो जाता है तो ऊर्जा का बहाव भी एक ही दिशा में होता है। ऐसे चित्त की शक्ति बढ़ जाती है, फिर वह जो भी सोचता है वह घटित होने लगता है। जो लोग दृड़ निश्चिय होते हैं, अनजाने में ही उनकी भी धारणा पुष्ट होने लगती है।योगभ्रष्ट : हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म अनुसार धारणा सिद्ध व्यक्ति को योगी, अवधूत, सिद्ध, संबुद्ध कहते हैं। यहीं से धर्म मार्ग का कठिन रास्ता शुरू होता है, जबकि साधक को हिम्मत करके और आगे रहस्य के संसार में कदम रखना होता है। कहते हैं कि यहाँ तक पहुँचने के बाद पुन: संसार में पड़ जाने से दुर्गति हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को योगभ्रष्ट कहा जाता है, इसलिए ऐसे साधक या योगी को समाज जंगल का रास्ता दिखा देता है।वन-वे ट्रैफिक : इसे ऐसा समझ लीजिए क‍ि अब आप वन-वे ट्रैफिक में फँस गए हैं, अब पीछे लौटना याने जान को जोखिम में डालना ही होगा। कहते हैं कि छोटी-मोटी जगह से गिरने पर छोटी चोट ही लगती है, लेकिन पहाड़ पर से गिरोगे तो भाग्य या भगवान भरोसे ही समझो।जरा बच के : इसलिए 'जरा बच के'। यह बात उनके लिए भी जो योग की साधना कर रहे हैं और यह बात उनके लिए भी जो जाने-अनजाने किसी 'धारणा सिद्ध योगी' का उपहास उड़ाते रहते हैं। कहीं उसकी टेढ़ी नजर आप पर न पड़ जाए।

गुरूजी कृपा


टीम इंडिया और विजय मंत्र
निदान: स्‍वर सिद्धांत (सुपरनेचर सैंस)
आधार- सूर्य चन्‍द्र व पंचतत्‍व (प्रकृति)
उद्देश्‍य- ताकि भारतीय, परछाईयों के पीछे न भागकर जीवन संबंधी, अनछुए पहलुओं सहित-सभी तरह के खेलों में निश्चित ही ‘’विजयी’’ हो सकें।
विविधा- क्‍या यह सूचना भारतीय तक पहुंचेगी ?
क्‍या स्‍वर सिद्धांत के रहस्‍यों को मनुष्‍य कभी समझ पायेगा? क्‍योंकि सभी कुछ अंधविश्‍वास नहीं होता।
प्रिय बन्‍धुओं- दुनिया में कोई ‘मंत्र’ नहीं लेकिन प्रकृति में कुछ तो है—जिससे पर ले जा सकता है।
अत: विजयपाना अब अधिक दूर नहीं
बन्‍धु, इस जीव श्रृष्टि में एक मात्र ऐसा अनभुत ‘सुपर सिद्धांत’ विद्यमान है, जिसके जानने समझने कृमश- जीत सुनिश्चित हो सकती है और वह है’---- ‘स्‍वर सिद्धांत।
स्‍वर सिद्धांत खिलाडियों के मन-मस्ष्तिक को एकाग्र कर चेतना में ‘स्‍टीक टाइमिंग’ की वो आग भरता है कि विरोधी टीम की मनोदशा पशोपेश में पड जायेगी कि ये क्‍या हुआ?
’स्‍वर सिद्धांत के रहस्‍य’
जबकि स्‍वर सिद्धांत मनुष्‍य के जन्‍म से पूर्व ही, जीवन रहने-वजूद को बचाये रखने का, एक मात्र अपूर्व कौशल उपहार में मिला है। जिसकी जानकारियों के बिना युगों से मनुष्‍य के जीवन का कोई अर्थ नहीं ----? अत: जीवन में रंग भरने हेतु क्‍यों न स्‍वर-सिद्धांत के रहस्‍यों को समझा जाये।
हमारी नासिका (नाक) पर दाहिने व बाई ओर दो छिद्र बने हुए हैं जिनमें प्राण क्रियाएं चला करती हैं और मनस्थिति में भी बदलाव होता रहता है। अर्थात दाहिने छिद्र को सूर्यस्‍वर कहते हैं और बाये छिद्र को चन्‍द्रमा स्‍वर कहते है और चन्‍द्रमा स्‍वर पर चन्‍द्रमा का नियंत्रण का नियंत्रण होता है।
‘चन्‍द्रमा स्‍वर के चलते मनोदशा’
प्रकृति ने मनुष्‍यों के शरीर का रक्‍तचाप, तापक्रम सामान्‍य रखने एवं मनस्थिति को शीतल व शांत रखने हेतु चन्‍द्रमा स्‍वर की रचना की है। चन्‍द्रमा स्‍वर दिन के समय, आक्रोश से बचाकर, मस्तिष्‍क को शांत तो रखता है, लेकिन इस स्‍वर के चलते पुरूषों की मनस्थिति मौजूदा विषयों अथवा खेलों पर एकाग्र न रहकर कहीं ओर केद्रित रहती है। इसी वजह से खेलों, क्रिकेट आदि में ‘टीम इंडिया’ को हार का सामना करना पड़ता है।
उक्‍त बताई गई इस प्राकृतिक प्रक्रिया से एक दम उलट---- मनस्थिति के रहस्‍यों को भी पूरी तरह समझ ले, क्‍योंकि इसी में टीम इंडिया की जीत का राज रहस्‍य बनकर छुपा है।
सूर्य स्‍वर के चलते मनोदशा
जो व्‍यक्ति अपनी नासिका के स्‍वर सिद्धांत के रहस्‍यों को नहीं जानते तो वो अपने जीवन को भाग्‍य व दुर्भाग्‍य जैसी अविकसित मानसिकताओं में बांटकर, अशांति को दावत देकर, अपने अस्तित्‍व को कोसते रहते है और अक्‍सर इस दुविधा में फंसे रहते हैं कि, क्‍या--- आज मैं कामयाब रहूंगा ? क्‍या आज – मैं अमुक दायित्‍व पर खरा उतरूगा ? या क्‍या – आज मैं टीम इंडिया को जीत दिला सकूगा ? इत्‍यादि ये सब अंधी धारणाएं एकाग्रता का सुबूत नहीं बल्कि मानसिक टयूनिंग बिगड़ी होने के लक्षण है?
अत: खिलाडियों को सभी खेलों में विजय प्राप्‍त करने के लिए अपनी-अपनी नासिका के स्‍वरों का ज्ञान अनुभव करते रहना नितान्‍तावश्‍यक है क्‍योंकि ‘स्‍वर ज्ञान’ से यह स्‍पष्‍ट सिद्ध हो जाता है कि खेलते समय चन्‍द्रमा स्‍वर के चलते निश्‍चत ही हार होती है, लेकिन स्‍वर क्रिया की इस स्थिति को बदलने के लिए क्‍या किया जाये? ताकि विरोधीटीम के होसले पस्‍त किये जा सके?
यदि किसी खिलाडी की नासिका का चन्‍द्रस्‍वर चल रहा है तो या तो वो 0 रन पर आउट होगा या फिर 5-10 रन बनाकर पवैलियन पहुंच जायेगा जिससे खिलाडियों को कैरियर पर बहुत बुरा असर पडता रहता देखा जा सकता है।
चन्‍द्रमा स्‍वर को बदलने की कुछ मुद्राएं
अत: अब जो हुआ सो हुआ, अब भविष्‍य के खेलों के वास्‍ते खिलाडियों को अपनी’2 नासिका के सुरो पर ध्‍यान रखना व उनका साक्षी बने रहना जरूरी है और यदि किसी का चन्‍द्रमा स्‍वर (लेफ्ट) चल रहा है तो विभिन्‍न मुद्राओं में बैठने लेटने व खड़े रहने पर अपने बाये स्‍वर को बदल कर दाहिने स्‍वर अर्थात सूर्य स्‍वर को चलाकर निश्‍चित ही विजय प्राप्‍त की जा सकती है।
1 यदि आप ड्रैसिंग रूप में बैठे है तो अपने बाये हाथ पर शरीर का पूरा भाग भार डालकर कुछ देर बैठे रहे तो कुछ ही क्षणों में सूर्य स्‍वर चलने लगेगा।
2- यदि आप ड्रेसिंग रूम लेट रहे हैं तो बाई और करवट बदल कर लेटे रहे तो सूर्य स्‍वर चलने लगेगा।
3- यदि आप ड्रैसिंग रूप में खड़े है तो अपने बाये पाव की ओर पूरा भार डाल कर खडे रहेंगे तो कुछ ही क्षणों में सूर्य स्‍वर चलने लगेगा।
4- यदि सूर्य स्‍वर को अधिक देर तक चलाये रखना है तो अपने दाहिने नासा छिद्र में उंगली के द्वारा सरसों का तेल या देशी घी लगाना चाहिए।
5- यदि आप प्‍लेग्राउड में प्रवेश कर रहे हैं तो अपने दाहिने पांव को सर्वप्रथम वाउंडरी के अंदर रखकर ग्राउंड के प्रवेश करें—इससे विरोधी टीम की मनस्थिली पर आक्रषण होता है और वो कन्‍फूजन में पड़ जाते है।
इस तरह सूर्य स्‍वर की इस प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा विरोधी टीम सस्‍ते में पवैलियन की राह पकडी है क्‍योंकि सूर्य स्‍वर के द्वारा भारतीय टीम के मन मस्ष्तिक द्वारा शरीर में सौर ऊर्जा की वो आग भर जाती है जिससे एकाग्रता प्रचुर मात्रा में होने की वजह से चेतना क्षणों में खेल की बारीकियों का निरक्षण कर टाइमिंग की स्‍टीक सोट मारती है और विरोधी टीम पशोपेश में पड़ जाती है कि ये क्‍या हुआ अर्थात उन्‍हें संभलने का अवसर ही नहीं मिलता--- और टीम इंडिया विजयी होती है।
इसलिए टीम इंडिया को प्रत्‍येक खेलों में विजयी होने हेतु अपनी स्‍वर क्रियाओं का ज्ञान अनुभव होना जरूरी है क्‍योंकि केवल स्‍वर ज्ञान ही आत्‍मज्ञान है जिससे मनुष्‍य मुकम्‍मल हो जाता है। इसे ही सुपर सिद्धांत अथवा स्‍वर सिद्धांत कहते है।
अत: स्‍वर सिद्धांत में जीवन विज्ञान संबंधी ओर से अनछुए पहलू रहस्‍य बन कर छुपे है जिन्‍हें जानने समझने व परखने के लिए प्रत्‍येक भारतीय के पास केवल ‘नाक’ का होना जरूरी है और नाक को बचाये रखने के लिए नासिका में चल रही स्‍वर क्रियाओं का ज्ञान तो होना ही चाहिए, अन्‍यथा नाक का कटते रहना निश्‍चत है?
इसलिए स्‍वर सिद्धांत –जीवन और विनाश के बीच एकमात्र आखरी रक्षा कड़ी है।
यही टीम इंडिया की जीत का मंत्र है- विचार करे’---- विचार करें
आलेख बलराज शर्मा जांगिड़

Thursday, August 7, 2008

ग़ज़ल

ग़ज़ल
किसी को दुख नहीं होता, कहीं मातम नहीं होताबिछड़ जाने का इस दुनिया को कोई ग़म नहीं होताजगह मिलती है हर इक को कहां फूलों के दामन मेंहर इक क़तरा मेरी जां क़तरा-ए-शबनम नहीं होताहम इस सुनसान रस्ते में अकेले वो मुसाफिर हैंहमारा अपना साया भी जहां हमदम नहीं होताचरागे-दिल जला रखा है हमने उसकी चाहत मेंहज़ारों आंधियां आएं, उजाला कम नहीं होताहर इक लड़की यहां शर्मो-हया का एक पुतला हैमेरी धरती पे नीचा प्यार का परचम नहीं होताहमारी ज़िन्दगी में वो अगर होता नहीं शामिलतो ज़ालिम वक़्त शायद हम पे यूं बारहम नहीं होताअजब है वाक़ई 'फ़िरदौस' अपने दिल का काग़ज़ भीकभी मैला नहीं होता, कभी भी नम नहीं होता-फ़िरदौस खान

ग़ज़ल

ग़ज़ल
तेरी ख़ामोश निगाहों में अया होता हैमुझको मालूम है मुहब्बत का नशा होता हैमुझसे मिलता है वो जब भी मेरे हमदम की तरहउसकी पलकों पे कोई ख़्वाब सजा होता हैचैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसेमैं करूं शिकवा तो नाराज़ ख़ुदा होता हैहाथ भी रहते हैं साये में मेरे आंचल केजब हथेली पे तेरा नाम लिखा होता है-फ़िरदौस खान

ग़ज़ल

हर बात यहां ख़्वाब दिखाने के लिए हैतस्वीर हकीक़त की छुपाने के लिए हैमहके हुए फूलों में मुहब्बत है किसी कीये बात महज़ उनको बताने के लिए हैचाहत के उजालों में रहे हम भी अकेलेबस साथ निभाना तो निभाने के लिए हैमाज़ी के जज़ीरे का मुक़द्दर है अंधेरागुज़रा हुआ लम्हा तो रुलाने के लिए है ये चांद की बातें, वो रफाकत की कहानी आंगन में सितारों को बुलाने के लिए है चाहत, ये मरासिम, ये रफाकत, ये इनायत इक दिल में किसी को ये बसाने के लिए हैं 'फ़िरदौस' शनासा हैं बहारों की रुतें भीमौसम ये खिज़ां का तो ज़माने के लिए है-फ़िरदौस खान

क्‍या आपको पता है कि सूक्ष्‍म शरीर भी होता है

दर्शन तांत्रिकों के अनुसार मानव शरीर के दो रूप है- भौतिक शरीर एवं सूक्ष्‍म शरीर। सूक्ष्‍म शरीर अभौतिक होते हुए भी वस्‍तुत: भौतिक शरीर का स्‍वरूप है। सामान्‍यत: जागृत अवस्‍था में भौतिक एवं सूक्ष्‍म शरीर, दोनों संपूर्ण ऐक्‍य में रहते है और वे एक दूसरे में मिले होते है। किन्‍तु बहुत सी परिस्थितियों में सूक्ष्‍म शरीर और भौतिक शरीर एक दूसरे से अलग हो जाते है। तब सूक्ष्‍म शरीर के माध्‍यम से भौतिक शरीर को देखा जा सकता है। सूक्ष्‍म शरीर लौकिक एवं पारलौकिक मंडल में यात्रा भी कर सकता है और इस यात्रा में कोई भौतिक वस्‍तु उसके लिए बाधक नहीं बन सकती है। अलग होने के बावजूद सूक्ष्‍म शरीर, भौतिक शरीर से एक महीन सूत्र संबंध बनाए रखता है। व्‍यक्ति की मृत्‍यु होने पर यह संबंध टूट जाता है और सूक्ष्‍म शरीर पूरी तरह स्‍वच्‍छंद हो जाता है।
कैसे करें सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा
इस विद्या को सीखने के लिए सर्वप्रथम आप सभी प्रकार के नकारात्‍मक भावों भय, बुरे विचार, हिचाकिचाहट, संदेह, निराशा, कुंठा, घबराहट आदि को पूरी तरह से त्‍या दें। मन में अटूट विश्‍वास करें कि सूक्ष्‍म शरीर है और वह भौतिक देह से अलग हो सकता है।
सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा क्‍यों
सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा की चरम सीमा परम सुख एवं आनंद की प्राप्ति है। धार्मिक आस्‍था है कि इस लौकिक संसार से परे एक पारलौकिक मंडल है, जो अदभुत प्रकाश से आलोकमान है। इस पारलौकिक मंडल तक पहुंच पाना सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा का उद्देश्‍य है। भौतिक स्‍तर पर यह कंपनयुक्‍त तरंगों के जाल के समान है, जो सारे ब्रह्माड जुडा है और ब्रह्माड में घटी प्रत्‍येक घटना चाहे वह विचार, शब्‍द अथवा छोटी से छोटी क्रिया ही क्‍यों न हो, इस जाल में उलझ जाती है और उस पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती है। मनुष्‍य भी इस जाल का एक अंग है और उसके शरीर में पूर्वनिर्मित कुछ ऐसे केंद्र है जिनमें अतिन्द्रिय विकास संभव है। पारलौकिक मंडल से संपर्क जोडने में इन्‍हीं केंद्रो का प्रयोग किया जाता है। सूक्ष्‍म शरीर के समान ये केंद्र भी अदृश्‍य है। प्रत्‍येक केंद्र संपनजाल का बना है। तंत्र में इन्‍हें चक्र की संज्ञा दी गई है। शरीर में बहुत से चक्र है और अंतिम सबसे उच्‍च चक्र मस्ष्कतक में स्थित है। सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा का उद्देश्‍य इस परम चक्र तक पहुंचना ही है।
स्रोत- 1 जुलाई 2008 राजस्‍थान पत्रिका, पेज 10