Thursday, August 7, 2008

ग़ज़ल

हर बात यहां ख़्वाब दिखाने के लिए हैतस्वीर हकीक़त की छुपाने के लिए हैमहके हुए फूलों में मुहब्बत है किसी कीये बात महज़ उनको बताने के लिए हैचाहत के उजालों में रहे हम भी अकेलेबस साथ निभाना तो निभाने के लिए हैमाज़ी के जज़ीरे का मुक़द्दर है अंधेरागुज़रा हुआ लम्हा तो रुलाने के लिए है ये चांद की बातें, वो रफाकत की कहानी आंगन में सितारों को बुलाने के लिए है चाहत, ये मरासिम, ये रफाकत, ये इनायत इक दिल में किसी को ये बसाने के लिए हैं 'फ़िरदौस' शनासा हैं बहारों की रुतें भीमौसम ये खिज़ां का तो ज़माने के लिए है-फ़िरदौस खान

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