Thursday, August 7, 2008

क्‍या आपको पता है कि सूक्ष्‍म शरीर भी होता है

दर्शन तांत्रिकों के अनुसार मानव शरीर के दो रूप है- भौतिक शरीर एवं सूक्ष्‍म शरीर। सूक्ष्‍म शरीर अभौतिक होते हुए भी वस्‍तुत: भौतिक शरीर का स्‍वरूप है। सामान्‍यत: जागृत अवस्‍था में भौतिक एवं सूक्ष्‍म शरीर, दोनों संपूर्ण ऐक्‍य में रहते है और वे एक दूसरे में मिले होते है। किन्‍तु बहुत सी परिस्थितियों में सूक्ष्‍म शरीर और भौतिक शरीर एक दूसरे से अलग हो जाते है। तब सूक्ष्‍म शरीर के माध्‍यम से भौतिक शरीर को देखा जा सकता है। सूक्ष्‍म शरीर लौकिक एवं पारलौकिक मंडल में यात्रा भी कर सकता है और इस यात्रा में कोई भौतिक वस्‍तु उसके लिए बाधक नहीं बन सकती है। अलग होने के बावजूद सूक्ष्‍म शरीर, भौतिक शरीर से एक महीन सूत्र संबंध बनाए रखता है। व्‍यक्ति की मृत्‍यु होने पर यह संबंध टूट जाता है और सूक्ष्‍म शरीर पूरी तरह स्‍वच्‍छंद हो जाता है।
कैसे करें सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा
इस विद्या को सीखने के लिए सर्वप्रथम आप सभी प्रकार के नकारात्‍मक भावों भय, बुरे विचार, हिचाकिचाहट, संदेह, निराशा, कुंठा, घबराहट आदि को पूरी तरह से त्‍या दें। मन में अटूट विश्‍वास करें कि सूक्ष्‍म शरीर है और वह भौतिक देह से अलग हो सकता है।
सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा क्‍यों
सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा की चरम सीमा परम सुख एवं आनंद की प्राप्ति है। धार्मिक आस्‍था है कि इस लौकिक संसार से परे एक पारलौकिक मंडल है, जो अदभुत प्रकाश से आलोकमान है। इस पारलौकिक मंडल तक पहुंच पाना सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा का उद्देश्‍य है। भौतिक स्‍तर पर यह कंपनयुक्‍त तरंगों के जाल के समान है, जो सारे ब्रह्माड जुडा है और ब्रह्माड में घटी प्रत्‍येक घटना चाहे वह विचार, शब्‍द अथवा छोटी से छोटी क्रिया ही क्‍यों न हो, इस जाल में उलझ जाती है और उस पर हमेशा के लिए अंकित हो जाती है। मनुष्‍य भी इस जाल का एक अंग है और उसके शरीर में पूर्वनिर्मित कुछ ऐसे केंद्र है जिनमें अतिन्द्रिय विकास संभव है। पारलौकिक मंडल से संपर्क जोडने में इन्‍हीं केंद्रो का प्रयोग किया जाता है। सूक्ष्‍म शरीर के समान ये केंद्र भी अदृश्‍य है। प्रत्‍येक केंद्र संपनजाल का बना है। तंत्र में इन्‍हें चक्र की संज्ञा दी गई है। शरीर में बहुत से चक्र है और अंतिम सबसे उच्‍च चक्र मस्ष्कतक में स्थित है। सूक्ष्‍म शरीर की यात्रा का उद्देश्‍य इस परम चक्र तक पहुंचना ही है।
स्रोत- 1 जुलाई 2008 राजस्‍थान पत्रिका, पेज 10

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