जैव उर्वकर
(खेती के लिए एक अनिवार्य अदान-प्रदान)
परिचय- पोषण भोजन सजीवों की प्राथमिक आवश्यकता है जो पौधों की वृद्धि एवं विकास में सहायक है, जिसमें सभी तत्वों का आवश्यक एवं संतुलित मात्रा में होना अति आवश्यक है, पौधो के लिए मुख्यत: हवा पानी भूमि तथा उर्वरकों से प्राप्त होते है। पोषक तत्वों को पौधों की प्राय अवस्था में बदलने का कार्य सूक्ष्म जीवों द्वारा किया जाता है। ये सूक्ष्म जीव ही जैव उर्वरकों के नाम से जाने जाते है, जो भोजन की पूर्ति के साथ-साथ फसल को कई प्रकार से लाभान्वित करते है जैसे पादप क्रियाओं में वृद्धि पौधों के लिए विटामिन्स तथा हारमोन्स का निर्माण तथा उनका क्रियान्वयन, एन्टीबायोटिक व रोग निरोधक क्षमता का निर्माण तथा पौधों के जड़ भाग में नमी का संरक्षण कर अन्य कई प्रकार सो पौधों को सुरक्षा प्रदान करते हुए मृदा की उर्वरता को लम्बे समय उपजाऊ बनाने में सहायक है। अत: जैव उर्वरक भूमि की लम्बी आयु के द्योतक है।
मुख्य जैव उर्वरक एवं उनकी कार्य क्षमता
राइजोबियम- यह सिर्फ दलहनों में नत्रजन का स्थरीकरण करता है।
एजैटोबैक्टर- यह नत्रजन स्थरीकरण व पादप क्रियाओं को तेज करता है।
एजोस्पिरिलियम- सभी गैर दलहन एवं दलहनों में भी उपयोगी।
एसीटोबैक्टर- गन्ने की फसल में नत्रजन की पूर्ति करता है।
पी.एस.बी.कल्चर- यह फसलों फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ाता है।
वैम माइकोराइजा- यह सभी पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाते हैं।
एजोला- यह धान में नत्रजन की पूर्ति तथा मृदा उर्वरता को बढ़ाता है।
बी.जी.ए- यह धान में नत्रजन की पूर्ति करता है।
कम्पोस्ट डिकम्पोजर- यह कल्चर से कम्पोस्ट खाद कम समय में तैयार हो जाती है।
रोग बायोकल्ट्रोलर – ये रोग व कीट लार्वो से पादक सुरक्षा प्रदान करते है।
प्लान्ट राइजोबैक्टिरिया- ये लाभदायक सूक्ष्म जीव जो फसल वृद्धि एवं विकास में कई पकार से लाभदायक है।
राइजोबियम – यह जीवाणु सभी दलहन फसलों के जड़ भाग में ग्रंथि का निर्माण कर दलहन फसलों की 80-90 प्रतिशत नत्रजन मांग की पूर्ति करता है। जिसे बीजोपचार द्वारा 10 से 12 किलो बीज में एक राइजोबियम 200 ग्राम के पैकिट को एक गिलास पानी या चावल के माड़ में लेही बनाकर बाजो में मिलाया जाता है। तथा सभी दलहनों के लिए अलग- अलग विशेष राइजोबियम कल्चर का प्रयोग होता है।
एजैटोबैक्टर – यह जीवाणु कल्चर सभी फसलों के लिए नत्रजन की 15 से 35 किलो प्रति हेक्टेयर तक की पूर्ति करता है।
एजोस्पिरिलयम - यह जीवाणु एजोटोबैक्टर जैसा ही जैव उर्वरक है तथा इसे बीजोपचार पौध-जड़ोपचार तथा मृदा उपचार द्वारा सभी फसलों में प्रयोग किया जा सकता है। तथा नत्रजन की स्थितिकरण क्षमता 20-20 किलो प्रति फसल है।
एसीटोबैक्टर – यह जैव उर्वरक मुख्यत: गन्ने के लिए विशेष उपयोगी है। गन्ने के साथ-साथ सभी शर्करा वाली फसलों के सम्पूर्ण भाग में पनपकर 65 से 150 किलो प्रति हेक्टर तक नत्रजन की पूर्ति करता है।
पी.एस.बी.कल्चर – इसमें प्रयोग होने वाले जीवाणु खेत में पड़े फास्फोरस को जो कि पौधों को पूरी तरह प्राप्त नहीं होता, को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर फसल के लिए उपयोगी बनाता है जिससे व्यर्थ फास्फोरस का अधिकतम उपयोग हो जाता है जिससे फसल को 10-40 किलो फास्फोरस उपलब्ध होकर फसल में 7-21 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है। तथा सभी फसलों के लिए लाभदायक होता है।
वैम माइकोराइजा – यह जीवित लाभदायक फफूंदी जो फसलों के सम्पूर्ण जड़ भाग में पनपकर पौधों में फास्फोरस के साथ-साथ अनेक सभी आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाते है तथा नमी संरक्षण व कई रोगों से सुरक्षा प्रदान करते है। उसका प्रयोग बीजोपचार व पौध –जड़ोंपचार द्वारा किया जा सकता है।
एलोजा एवं बी.जी.ए. – एजोला एक जलीय खरपतवार है। इसे तालाब व झील आदि से एकत्रित कर धान के खेत में डाल सकते हैं। जबकि बी.जी.ए. कल्चर (5 किलो प्रति एकड़) को जैव उर्वरक उत्पादन केन्द्र से खरीद कर धान के खेत में रोपाई के समय प्रयोग करते है। तथा दोनो ही अलग-अलग 30 से 40 किलो प्रति हैक्टर नत्रजन की पूर्ति करते है। एजोला एवं बी.जी.ए दोनो ही धान के लिए बहु उपयोगी है।
कम्पोस्ट डिकम्पोजर – यह कल्चर गोबर की खाद व कम्पोस्ट की विच्छेदन क्रिया को तेल कर कम समय में खाद तैयार हो जाती है तथा इस कल्चर को 1 से 3 प्रतिशत कच्चे खाद की मात्रा के अनुसार गढडा भरते समय अथवा इसे एक सप्ताह बाद गड्ढों में मिला देते हैं।
रोग बायोकन्ट्रोलर – ऐसे बहुत से कल्चर अब बाजार में उपलब्ध होने लगे है जो कि जैविक क्रिया के उत्पादों द्वारा कई बीमारियों एवं कीट-लार्वो आदि से फसल सुरक्षा करते है। तथा फसलों में कल्चर की तरह से प्रयोग किये जाते है।
प्लान्ट राजोबैक्टिरिया – इसमें प्राप्त लाभदायक सभी जीवाणु जो पौधो के जड़ क्षेत्र में पनपते हुए फसलों को विभिन्न प्रकार से लाभान्वित करते है जिसमें मृदा, पौधो दोनो का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
जैव उर्वरकों की प्रयोग विधि –
(1) बीजोपचार – सीधी बीजाई वाली सभी फसलों के लिए बीजोपचार उत्तम तरीका है। इसके लिए नत्रजन देने वाले तथा फास्फोरस देने वाले एक-एक पैकिट को घोले पानी अथवा ठंडे चावल के मांड में लेही बनाकर 10-12 किलो बीज पर काली परत चढ़ाने तक मिलायें तथा छाया में सुखाकर तुरंत बीजाई करें।
(2) पौध जड़ोपचार – रोपाई की जाने वाली सभी फसलों के लिए 2 किलो एजैटोबैक्टर/ एजोस्पिरिलयम तथा उतनी ही मात्रा में फास्फोटिका आवश्यक जल में घोल बनाकर एक-दो घंटे रखें तथा धान के लिए रात भर रखें। इससे एक एकड़ पौध की रोपाई की जा सकती है।
(2)
(3) मृदाउपचार – चार किलो एजैटोबेक्टर या एलोस्पिरियलम अथवा दोनो दो-दो किलो तथा चार किलो पी.एस.बी. कल्चर को उचित नमी वाले 100 से 150 किलो गोबर की तैयार खाद में मिश्रण तैयार कर 24 घंटे बाद फसालों की जड़ वाले भाग में प्रयोग करें।
(3)
वावधानियॉं –
हमेशा ताजे कल्चर का प्रयोग करें।
रासायनिक उर्वरकों व रसायनों के साथ नहीं मिलाचा चाहिए।
कल्चर हमेशा ठंडे स्थानों पर रखें।
दलहन फसल के अनुसार विशेष राइजोबियम का चयन करें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment