Monday, October 13, 2008

गेहूँ

गेहूँ
गेहूँ प्रदेश की प्रमुख धान्‍य फसल है। भारत की खाद्यान्‍न संबंधित आत्‍मनिर्भरता तथा आर्थिक उन्‍नति में इसका महत्‍वपूर्ण योगदान है। प्रदेश में इसका कुल रकबा 269.50 हजार हेक्‍टेयर तथा उत्‍पादकता 1859 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर है, जो की अन्‍य प्रदेशों की तुलना में कम है। उन्‍नत किस्‍म व नई उत्‍पादन तकनीक को अपनाकर निश्चित ही उत्‍पादन में वृद्धि की जा सकती है।
भूमि का चुनाव: गेहूँ की खेती उचित जल प्रबंध के साथ सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। विपुल उत्‍पादन के लिये गहरी एवं मध्‍यम दोमट भूमि अधिक उपयुक्‍त है।
भूमि की तैयारी:
(अ) असिंचित क्षेत्र: वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों में छोटे-छोटे कन्‍टूर बनाकर भूमि के कटाव और वर्षा जल को रोका जाना चाहिए। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। नमी संरक्षण हेतु प्रत्‍येक वर्षा के बाद बतर आने पर समय-समय पर खेत की जुताई करते रहें तथा वर्षा समाप्‍त होने पर प्रत्‍येक जुताई के बाद पाटा अवश्‍य लगायें।
(ब) सिंचित क्षेत्र: खरीफ फसल काटने के तुरंत बाद ही जमीन की परिस्थिति के अनुसार जुताई करें। यदि खेत कड़ा हो और जुताई संभव न हो तब सिंचाई देकर जुताई करें। दो या तीन बार बखर या हल चला कर जमीन भुरभुरी करें, अंत में पाटा चला कर भूमि समतल बनायें।
बुवाई का समय: सिंचाई की व्‍यवस्‍था के आधार पर निम्‍नानुसार बोनी करें:-
1. असिंचित गेहूँ

15 अक्‍टूबर से 31 अक्‍टूबर तक
2. अर्द्धसिंचित गेहूँ

15 अक्‍टूबर से 10 नवम्‍बर तक
3. सिंचित गेहूँ समय से

10 नवम्‍बर से 25 नवम्‍बर तक
4. सिंचित गेहूँ देरी से

05 दिसम्‍बर से 20 दिसम्‍बर तक

बीज की मात्रा: बीज की मात्रा का निर्धारण दानों के वजन एवं अंकुरण क्षमता पर निर्भर करता है। सामान्‍यत: 38 ग्राम प्रति एक हजार बीज के वजन वाली किंस्‍मों का बीज 100 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर की दर से बोए। देरी से बोनी की स्थिति में बीज दर में 20-25 प्रतिशत बढोत्‍तरी करके बोनी करें। अंकुरण कम होने की दशा में बीज दर आवश्‍यकतानुसार निर्धारण कर बोनी करें।
बीजोपचार: दीमक के नियंत्रण हेतु बीज को कीटनाशक दवा क्‍लोरोपाइरीफास 20 ई.सी. 400 मि.ली. 5 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति क्विंटल बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। इसके पश्‍चात कार्बोक्सिन (विटावेक्‍स 75 डब्‍ल्‍यू.पी.) या बेनोमिल (बेनलेट 50 डब्‍ल्‍यू.पी.) 1.5-2.5 या थाइरम 2.5-3 या थाइरम 2.5-3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। बुवाई पूर्व बीज को एजेटोबेक्‍टर 5-10 ग्राम एवं पी.एस.बी. कल्‍चर 10-20 ग्राम प्रति किलो ग्राम के हिसाब से उपचारित करें।
बुवाई का तरीका: असिंचित अवस्‍था में कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. अर्धसिंचित अवस्‍था में कतार की दूरी 23-25 सेमी. तथा सिंचित अवस्‍था में कतार से कतार की दूरी 20-23 सेमी. रखें। पिछेती बोनी की अवस्‍था में कतार से कतार की दूरी 18 सेमी. रखना चाहिए। बीज की बुवाई 3-4 सेमी. गहराई पर करें। शुष्‍क बुवाई की स्थिति में उथली बोनी अंकुरण के लिये लाभप्रद होती है।
उन्‍नत किस्‍में:
क्र
कृषि परिस्थितिकी
पिसी किस्‍में
कठिया किस्‍में
अवधि (दिनों में)
उपज (क्विं./हे.)
1.
असिंचित/ अर्धसिंचति
जे.डब्‍ल्‍यू.एस.-17, सुजाता, एच.डब्‍ल्‍यू.-2004, एच.आई. 1500, एम.पी.-3020
एच.डी. 4672 (अमर), एच.आई. 8627
135-140
15-20
2.
सिंचित (समय पर बोनी हेतु)
एम.पी. 1142, एच.आई.-1077, जी.डब्‍ल्‍यू.-273, जी.डब्‍ल्‍यू.-322, जी.डब्‍ल्‍यू.-190
राज 1555, एच.डी. 4530, एच.
आई.-8498, एच.आई.-8381, जे.डब्‍ल्‍यू. 1106 (सुधा)
115-125
40-50
3.
सिंचि‍त (देरी से बोनी हेतु्)
डी.एल.-788-2, लोक-1, जी.डब्‍ल्‍यू. 173, एम.पी. 4010, एच.डी. 2864

95-110
35-40

खाद उर्वरक की मात्रा:
अ. असिंचित अवस्‍था: आधार खाद के रूप में 40 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलो ग्राम स्‍फुर प्रति हेक्‍टेयर बुवाई के समय दुफन या नारी के अगले पोर से देना चाहिए। मिट्टी परि‍क्षण में यदि पोटाश की मात्रा कम पाई जाती है तो 10 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर के हिसाब से बुआई के समय देना चाहिए। खाद को बीज से 2-3 सेमी. नीचे डालना चाहिए।
ब. अर्धसिंचित अवस्‍था: नत्रजन 60 किलो ग्राम, स्‍फुर 40 किलोग्राम तथा 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्‍टेयर देना चाहिए। स्‍फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बोनी के समय आधार रूप में, शेष आधी 30 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्‍टैयर प्रथम सिंचाई पर दें।
स. सिंचित अवस्‍था: सिंचित अवस्‍था में नत्रजन 100-120 किलो ग्राम, स्‍फुर 60 किलो ग्राम तथा पोटाश 30 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टेयर देना चाहिए। बोनी के समय नत्रजन आधार रूप में ½ तथा पूरी मात्रा में स्‍फुर व पोटाश देना चाहिए। शेष ½ नत्रजन में से ¼ प्रथम सिंचाई (20-21 दिनों) पर तथा ¼ दूसरी सिंचाई (40-45 दिनों) पर देना चाहिए। जिन खेतों में मिट्टी परिक्षण पर जस्‍ते की कमी पाई जाती है वहॉं 25 किलो ग्राम जिंक सल्‍फेट प्रति हेक्‍टेयर बुवाई के पहले खेत में आधार खाद के रूप में देना चाहिए। यदि खेतों में सतत् गेहूँ की खेती की जा रही है तो 2 वर्ष में एक बार 25 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टेयर की दर से जिंक सल्‍फेट डालना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन: सिंचाई की उपलब्‍धता के आधार पर गेहूँ की विभिन्‍न अस्‍थाओं पर निम्‍न तालिका के अनुसार सिंचाई करें:-
सिंचाई
फसल अवस्‍था (‍बोनी के दिनों बाद

शीर्ष जड़ अवस्‍था (18-21 दिन)
कल्‍ले बनने की अवस्‍था (40*42 दिन)
गभोट की अवस्‍था (55-60 दिन)
फूल बनने की अवस्‍था (65-70 दिन)
दूध अवस्‍था (80-85 दिन)
दाने भरने की अवस्‍था (100-105 दिन)
दो सिंचाई


X
X


X
X
तीन सिंचाई


X


X


X
चार सिंचाई






X


X
पॉंच सिंचाई










X
छह सिंचाई













नोट:- एक सिंचाई उपलब्‍ध होने पर बोनी के 30-35 दिन बाद दें।
खरपतवार प्रबंधन:
अ. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार: इनके नियंत्रण के लिए 2-4, डी सोडियम साल्‍ट 0.5 किलो ग्राम सक्रिय तत्‍व प्रति हेक्‍टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 25-30 दिन बाद छिड़काव करें। दवा का 40 दिन बाद छिड़काव फसल के लिये हानिप्रद होता है। गेहूँ के साथ चना, मसूर, मटर की फसल होने पर इस दवा का प्रयोग न करें।
ब. संकर पत्ती वाले खरपतवार: संकर पत्ती वाले खरपतवार में जंगली जई, चिरैया बाजरा की समस्‍या पाई गई है। इससे बीज की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। जिन खेतों में खरपतवार दिखाई दे, उन्‍हें उखाड़ कर नष्‍ट कर दें। यदि खेत में नींदा बहुत अधिक है तो फसल चक्र अपनाएं। ऐसी स्थिति में बरसीम या रिजका की फसल लेना लाभप्रद है क्‍योंकि चारे की कटाई के साथ ये खरपतवार कट कर नष्‍ट हो जाते है। रासायनिक नियंत्रण हेतु:-
मेटाक्‍सुरान (डोसानेक्‍स) 1-1.5 किलो ग्राम सक्रिय तत्‍व या पेन्‍डीमिथलीन 1.00 किलोग्राम सक्रिय तत्‍व प्रति हेक्‍टेयर की दर से बोनी के तुरंत बाद तथा अंकुरण के पहले 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
आइसोप्रोटूरान 0.75 किलोग्राम सक्रिय तत्‍व प्रति हेक्‍टेयर 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें। इसके प्रयोग से दोनों ही प्रकार के खरतपवार नियंत्रित किये जा सकते हैं।
खेत में दोनों प्रकार के नीदा है तो आइसोप्रोटूरान 0.75 किलो ग्राम सक्रिय तत्‍व तथा 2-4, डी 0.5 किलो ग्राम सक्रिय तत्‍व का मिश्रण प्रति हेक्‍टेयर की दर से उपरोक्‍त बताई विधि अनुसार उपयोग करें। इस मिश्रण के प्रयोग से चिरैया, बाजरा, जंगली जई एवं अन्‍य खरपतवारों को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।
नीदा नाशक दवा का छिड़काव प्रथम सिंचाई के एक सप्‍ताह बार करें। छिड़काव के समय मिट्टी में नमी का होना अति आवश्‍यक है।
बोवाई पूर्व बीज को छलना लगाकार साफ करें तथा खरपतवारों के बीजों को अलग करें। पलेवा देकर खेत में जमें खरपतवारों को बखर चलाकर नष्‍ट किया जा सकता है।
पौध संरक्षण:
(अ) रोग: गेहूँ की उपज पर रोग के प्रकोप से उपज में काफी प्रभाव होता है। केवल गेरूआ रोग से ही गेहूँ की उपज में लगभग 12 प्रतिशत की हानि होती है।
अ. भूरा गेरूआ: गेहूँ की पत्‍तियों पर नारंगी भूरे रंग के धब्‍बे पड़ जाते है जो गोल होते है।
ब. काला गेरूआ: इसका प्रकोप अधिकतर तने पर आता है।
स. पीला गेरूआ: इस रोग में पत्‍तियों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्‍बे उभर आते है।
इन रोगों की रोकथाम के लिये रोगरोधी किस्‍में लगाये तथा उर्वरकों का संतुलित इस्‍तेमाल करें, फसल की सामयिक बोनी करें। रोग के लक्षण दिखाई देने पर जिंक मेगनीज कार्बामेट 2 किग्रा. या जिनेव 2.5 किग्रा. प्रति हेक्‍टेयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें।
1. कड़वा रोग: यह बीज जनित रोग है। रोगी पौधों में बालियां कुछ पहले निकल जाती है। इन बालियों में दानों के स्‍थान पर काला चूर्ण भर जाता है, जो हवा के झोके के साथ एक पौधे से दूसरे पौधों तक पहुँच जाता है। रोग्ग्रस्‍त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए। रोगरोधी किस्‍मों को ही लगाना चाहिए। बोनी के पहले बीज को वीटावेक्‍स (कार्बोक्सिन) 2.5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिये।
2. कर्नलबन्‍ट: इस रोग का प्रभाव दानों पर होता है। दानों में काले रंग का पाउडर बन जाता है। यह रोग बीज द्वारा फैलता है। इसकी रोकथाम के लिये जिस खेत में रोग लगा हो उस खेत में 2-3 वर्ष तक गेहूँ नहीं होना चाहिए। बोने से पहले बीज को थायरम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें। फूलने की अवस्‍था में सिंचाई न करें।
3. पर्ण ब्‍लास्‍ट: पत्तियॉं किनारों से सूखना प्रारम्‍भ करती हैं। आरंभ में पत्तियों में अण्‍डाकार सूखे धब्‍बे दिखाई देते हैं, बाद में यह टूटकर पूरी पत्तियों में फैल जाते हैं। नियंत्रण हेतु डायथेन एम-45 (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव फसल पर करें।
(ब) कीट: गेहूँ की फसल में दीमक, जड़माहो, भूरी मकड़ी आदि कीटों का प्रकोप होता है। इनके नियंत्रण हेतु एकीकृत कीट नियंत्रण विधि अपनाएं।
एकीकृत कीट नियंत्रण
1. खेत की अच्‍छी तरह जुताई करना चाहिये।
2. कच्‍ची व अधपकी गोबर की खाद का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्‍योंकि इसके प्रयोग से दीमक के प्रकोप की संभावना अधिक होती है।
3. खेत के आसपास मेढ़ों में यदि दीमक का बमीठा हो तो उसे गहरा खोदकर नष्‍ट कर देना चाहिए।
4. गेहूँ की बुवाई समय पर तथा बीज उपचारित करें। यदि दीमक के प्रकोप की संभावना है तब बीज को क्‍लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 400 मि.ली. 5 लीटर पानी में घोलकर 100 किलो ग्राम बीज को उपचारित करें। देरी से बोये गये (दिसम्‍बर-जनवरी) गेहूँ पर जड़ माहो को प्रकोप अधिक होता है। अत: समय पर बोनी करें।
5. खड़ी फसल पर दीमक या जड़माहो का प्रकोप होने पर क्‍लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्‍टेयर की दर से दवा को सिंचाई जल के साथ दें। अर्धसिंचित भूमि में उपरोक्‍त दवा की मात्रा 3 लीटर पानी में घोलकर 50 किलोग्राम रेत में मिलाकर खेत में फैलाकर पानी लगावें।
6. अर्धसिंचित फसल में नवम्‍बर-दिसम्‍बर माह में कल्‍ला छेदक भृंग के नियंत्रण के लिये मेलाथियान 500 मि.ली. या मिथाईल डेमेटान 650 मि.ली. दवा का 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्‍टेयर छिड़काव करें। इससे जेसिड का भी नियंत्रण हो जाता है।
7. भूरी मकड़ी का प्रकोप असिंचित गेहूँ पर होता है। नियंत्रण के लिये फारमोथियान 25 ई.सी. का 650 मि.ली. प्रति हेक्‍टेयर या मिथाइल डेमेटान का 650 मि.ली. प्रति हेक्‍टेयर की दर से छिड़काव करें। यदि आवश्‍यक हो तो 15 दिन बाद दवा का पुन: छिड़काव करें।
कटाई एवं गहाई: पकी फसल की कटाई जल्‍दी करना चाहिये, क्‍योंकि आग एवं ओला से कभी-कभी पकी फसल को बहुत नुकसान होता है। अधिक पकी फसल काटने से बालियॉं टूटती हैं और दाने झड़ते हैं। फसल की कटाई सुबह और शाम के समय करना चाहिए, इससे दाने कम झड़ेंगे। कटाई तेज धार वाले हंसिया से करना चाहिए। काटी गई फसल को तुरंत बोझों में बॉध लेना चाहिये, क्‍योंकि कटाई के समय तेज हवा चलने से कटी हुई फसल जड़ कर खराब हो जाती है। काटी गई फसल के बोझों को बैलगाड़ी या ट्रेक्‍टर ट्राली से ढुलाई करके खलिहान से इकट्ठा करना चाहिए। खलिहान में थ्रेसर या बैलों से गहाई करना चाहिए। इसके बाद उड़वानी द्वारा दाना अलग करके धूप में सुखाकर भंडारित करना चाहिये। खलिहान में आग और चूहों से बचाव करना चाहिए।
औसत उपज:
सिंचित दशा में : 40-50 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर
बारानी दशा में : 20-25 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर

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