Monday, October 13, 2008

उड़द

उड़द
मध्‍यप्रदेश में उड़द की खेती मंदसौर, झाबुआ, खरगोन, रतलाम, खण्‍डवा तथा धार जिले में अधिक होती है। मध्‍यप्रदेश में उड़द की उपज 2-4 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है जो कि बहुत कम है। उन्‍नत जातियों में 10-15 क्विंटल प्र‍ति हेक्‍टेयर पैदावार देने की क्षमता है। उड़द अधिकतर खरीफ मौसम में शुद्ध या अंर्तवर्तीय फसल के रूप में ली जाती है।
भूमि का चुनाव: उड़द की खेती विभिन्‍न प्रकार की भूमि में होती है। हल्‍की रेतीली, दुमट या मध्‍यम प्रकार की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्‍छा हो, उड़द के लिए अधिक उपयुक्‍त होती है। पी.एच. मान 7 से 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपयुक्‍त होती है। अम्‍लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्‍त नहीं है।
भूमि की तैयारी: वर्षा आरंभ होने के बाद दो-तीन बार हल बखर चलाकर खेत को समतल करें। वर्षा आरंभ होने से पहले बोनी करने से पौधे की बढ़वार अच्‍छी होती है।
उन्‍नत किस्‍में: मध्‍यप्रदेश के लिए अनुमोदित जातियों का चुनाव करें। जातियों की विशेषताएं निम्‍न प्रकार है:-
* बसंत बहार, टी.पी.यू् 4 और बी.बी. 3 : अधिक उपज देने वाली जातियॉ हैं।
* टाईप 9 : पकने की अवधि 70-75 दिन, 1000 दानों का वजन 35 ग्राम, उपज 12 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर। बीज मध्‍यम छोटा, हल्‍का काला व मध्‍यम ऊंचाई वाला पौधा।
* जबाहर उड़द-2 (आर.यू. 2) : पकने की अवधि 70 दिन, 1000 दानों का वजन 33 ग्राम उपज 10 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर। बीज मध्‍यम छोटा, चमकीला काला, पौधा कम फैलने वाला, मुख्‍य तने पर ही फलियॉ, पास-पास गुच्‍छों में लगती हैं।
* जबाहर उड़द 3- (जे.यू. 77-41) : पकने की अवधि 70 से 75 दिन, 1000 दानों का वजन 38 ग्राम, उपज 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर बीज मध्‍यम, छोटा हल्‍का काला, घनी रोऍ युक्‍त पौधा मध्‍यम कम फैलने वाला।
* खरगोन-3 : पकने की अवधि 85 से 90 दिन, 1000 दानों का वजन 42 ग्राम, उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर पौधा फैलने वाला व ऊंचा, बीज बड़ा, हल्‍का काला।
* पंत यू-30 : दाने काले मध्‍यम आकार के होते हैं। यह 70 दिनों में पक जाती है। औसत उपज 12 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर। यह रीवा व ग्‍वालियर तथा पीले मोजेक रोग से प्रभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्‍त है।
फसल चक्र
1. उड़द-गेहूँ
2. उड़द-करडी
3. उड़द-सरसों
बीजोपचार एवं बीज दर: 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्‍टेयर बोना चाहिए। बोनी के पूर्व बीज को 3 ग्राम थायरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
बोनी का समय: मानसून के आगमन पर या जून के अंतिम सप्‍ताह में पर्याप्‍त वर्षा होने पर बुवाई करें।
बोने की विधि: बोनी नारी या तिफन से करें। कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधों की दूरी 10 सेमी. रखे एवं बीज 4-6 सेमी. की गहराई में बोयें।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा: नत्रजन 20 किलोग्राम व स्‍फुर 50 किलो ग्राम (100 कि. डी.ए.पी. प्रति हेक्‍टेयर) के हिसाब से सम्‍पूर्ण खाद की मात्रा बुवाई के समय कतारों में बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये। दलहनी फसलों में गंधकयुक्‍त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्‍फेट, अमोनियम, सल्‍फेट, जिप्‍सम आदि का उपयोग करना चा‍हिए। विशेषत: गंधक की कमी वाले क्षेत्र में 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्‍टेयर गंधक युक्‍त उर्वरकों से दें। भूमि में पोटाश की कमी होने पर 20 किलोग्राम पोटाश/हेक्‍टेयर बुवाई के समय दें।
सिंचाई: फूल एवं दाना भरने की अवस्‍था पर खेत में नमी कम हो तो एक सिंचाई फसल को देना चाहिये।
निंदाई-गुड़ाई: खरपतवार फसलों को अनुमान से कही अधिक क्षति पहुंचाते है। अत: विपुल उत्‍पादन के लिये समय पर निंदाई-गुड़ाई कुल्‍पा व डोरा आदि चलाते हुए अन्‍य आधुनिक नींदानाशक का समुचित उपयोग करना चाहिए। नींदानाशक बासलीन 2 से 2.5 लीटर प्रति हेक्‍टेयर 600 लीटर पानी में घोल बनाकर जमीन बखरने के पूर्व नमी युक्‍त खेत में छिड़कने से अच्‍छे परिणाम मिलते हैं।
पौध संरक्षण कीट: उड़द की फसल को 16 प्रकार के कीट अगस्‍त व सितम्‍बर माह में हानि पहुंचाते है, जिससे 38 प्रतिशत तक उपज में कमी आ सकती है।
1. रस चूसने वाले कीट- फुदका माहो, सफेद मक्‍खी, थ्रिप्‍स आदि के निम्‍फ व प्रोढ़ पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं जिससे पत्तियॉ पीली होकर गिर जाती है। सफेद मक्‍खी मोजक विषाणु रोग वाहक है। इनके नियंत्रण हेतु डायमेथियोट 30 ई.सी. 0.3 प्रतिशत या फास्‍फारेसिडान 25 एम.एल. 250 एम.एल. प्रति हेक्‍टेयर या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1000 मि.ली./हेक्‍टेयर का छिड़काव करें।
2. फली बीटल- यह कीट भूरा व काला होता है जो पत्तियों को कुतर कर गोल छेद बनता है जिससे पत्तियॉ छलनी हो जाती है। क्विनाफास 1.5 प्रतिशत या थायोडान 4 प्रतिशत डस्‍ट 20 किग्रा. / हेक्‍टेयर 15 दिन क अंतर से दो बार फसल पर भुरकाव करें।
3. इल्लियॉ- ये 5 प्रकार की होती है जो हरी, भूरी, काली, लाल व रोऍदार होती है तथा पत्तियों खाती हैं। फालीडाल 2 प्रतिशत या थायोडान 4 प्रतिशत डस्‍ट 20 किग्रा./हेक्‍टेयर का फसल पर भुरकार करें।
4. फली छेदक इल्‍ली- यह इल्‍ली मटमैले रंग की काली धब्‍बे वाली होती है जो तना फूल व फलियों के अंदर घुसकर क्षति करती है। इससे 40 प्रतिशत फलियॉ क्षतिग्रस्‍त होती है एवं 15 से 20 प्रतिशत उपज में हानि होती है। फलियॉ बनते समय एक लीटर मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. प्रति हेक्‍टेयर छिड़कें तथा आवश्‍यकता होने पर 15 दिन बाद दोहरायें। उड़द की जल्‍दी पकने वाली जातियॉ पंत यू. 30 में अपेक्षाकृत कम कीट लगते हैं।
(ब) रोग
1. पावडरी मिल्‍ड्य- यह रोग पौधा अवस्‍था में फलियॉ लगने तक कभी भी देखा जा सकता है। इस रोग के कारण पैदावार में काफी क्षति होती है। यह रोग प्रारंभिक अवस्‍था के समय आता है तो पौधे पूर्ण रूप से सूख जाते हैं। इस रोग से पत्तियॉ, शाखाओं और फलियों पर सफेद चूर्ण सा दिखाई देता है। यह रोग अगस्‍त माह के प्रथम सप्‍ताह में प्रारंभ होता है। देर से बोई गई फसल पर इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
नियंत्रण-
1. घुलनशील गंधक 30 ग्राम 10 लीटर पानी में
2. कार्बन्‍डाजिम 10 ग्राम 10 लीटर पानी में अथवा
3. केरेथन एल.सी. 3 मि.ली. 10 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अंतर से छिड़काव करें।
4. रोग रोधक जातियॉ उड़द ए.बी.जी. 17 का चुनाव करें।
2. मेक्रोफौमिना पर्ण दाग तथा तना विगलन रोग- इस रोग के मुख्‍य लक्षण पौधों की जड़ों, तनों के विगलन में तथा पत्‍तों पर भूरे लाल रंग के धब्‍बों के रूप में दिखाई पड़ते हैं। यह रोग पौधों की किसी भी अवस्‍था में आता है। अंकुरण के एक माह बाद पौधे संक्रमित होने लगते हैं तथा जड़ तना सड़न के कारण पौधे मरने लगते हैं या छोटे रह जाते हैं। विगलन जड़ से शुरू होकर तने तक फैलता है तथा भूमि के निकट तने पर लाल भूरे रंग से लेकर काले रंग के धब्‍बे बनते हैं। तने पर असंख्‍य काले रंग के स्‍केलेरोशिया बनते हैं। संक्रमित तना बाद में काले रंग का हो जाता है।
नियंत्रण-
1. थीरम 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज के साथ मिलाकर बीजोपचार करें।
2. फसलचक्र अपनाएं, रोग रोधी फसलें जैसे ज्‍वार, बाजरा इत्‍यादि की बोनी करें।
3. पीला मोजेक- इस रोग के कारण उपज में बहुत अधिक कमी होती है। उपज में कमी संक्रमण की अवस्‍था पर निर्भर करती है। यदि संक्रमण फसल की प्रारंभिक अवस्‍था में होता है तब उपज बिलकुल नहीं होती है। रोग के प्रथम लक्षण पत्तियों पर गोलाकार पीले धब्‍बे के रूप में दिखाई देता है। ये दाग एक साथ मिलकर तेजी से फैलते हैं, जिससे पत्तियों पर पीले धब्‍बे, हरे धब्‍बे के अगल-बगल दिखाई देते हैं जो बाद में बिल्कुल पीले हो जाते हैं। नई निकलती हुई पत्तियों में से लक्षण आरंभ से ही दिखाई देते है। यह रोग सफेद मक्‍खी द्वारा संचारित होता है।
नियंत्रण-
1. सफेद मक्‍खी की रोकथाम हेतु मैटासिस्‍टाक्‍स 0.1 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 15 दिन के अंतर से करें।
2. रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें।
3. रोग रोधी जातियॉ जैसे उड़द पंत यू 19 एवं पंत यू 30 की बोनी करें।
कटाई एवं उपज-
फसल पूरी तरह पक जाने पर कटाई करें। उन्‍नत कृषि कार्यमाला अपनाने से उड़द की पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर प्राप्‍त की ज सकती है।

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